कुछ देखा तो सोचा लिखना शुरू करू, चलो शुरू से शुरू करते हैं. ....... कितना अजीब है का लोगों के लिए बुरा सोचना उसे दिक्कत होना तीन दिन हो आग हैं गोवा में, सच कहु टी सुकून नहीं है
क्या हूँ मई इससे क्या आरक पड़ता है मई खुश नहीं बस अपन आप से इससे किसी को फर्क नहीं पड़ता है शायद ऐसा नहीं है की कि किसी को न पड़ता हो पर है ऐसा की जिनको पड़ता है वो सोचते हाँ, और तो और वो कोई भी हो सकता है. हाँ मै लोग सोचते हैं और मैं उनमे से हु जी सोचते हैं बुरा नहीं हु अंदर से पर अजीब हो गया हु वो सब कुछ अजीब कुछ अजीब सा लता है भटका नहीं ु मै पर बिहार गया हु, और हाँ ये भी सही है की भटकना और बिखरना एक साथ नहीं पर ऐसा है की मेरे साथ और मेरी ज़िन्दगी में सीसा ही है तुम सोचोगे और बस सोचोगे
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